मैं तुम्हारी कहानियों को बड़े चाव से पढ़ता हूं और तुम्हारी लेखनी का कायल हूं। तुम्हारी लेखनी शैली अब कुछ कुछ मेरी समझ में आने लगी है। इसने रफ़्तार पकड़ ली है और आगे हर मुकाम पर यह और महीन, अदबज़दा और परिष्कृत होती चली जाएगी । अभी इसका रूप और बदलेगा, ये अपने अवगुंठनों से, अपने हिजाबों से और बाहर आएगी और तब तुम्हारे अंदाज़ ए अदब की, लेखन शैली की और समीक्षाएं की जायेंगी और तुम्हारी दास्तानगोई के बा अदब चर्चे होंगे।
सो एक तरह से मेरी समीक्षा किसी मिड टर्म इवैल्यूएशन की तरह है।
तुम्हारी कहानियों की खासियत है उनकी झीनी सी शुरूआत, हल्के हौले से पाठकों को चारों तरफ से लपेटती हुई एक खास धुंध की तरह, एक पारभासक आवरण की तरह ।
फ़िर बारी आती है शिल्प की, जो ताना बाना तुम बुनते हो , वो बड़ा सौम्य सा कोमल सा होता है। और आख़िर में एक हल्के पंच के साथ अंत। ये अंत बहुत सारे अनुत्तरित सवालों को छोड़ जाता है। और यही तुम्हारी कहानियों की सफलता है।
यहां तुम्हारी कहानियों में एक आम आदमी है जो खुद से, अपने विचारों से, अपनी मान्यताओं से और अपने पूर्वाग्रहों से लड़ता भिड़ता रहता है और इसी क्रम में कहानी आगे बढ़ती जाती है।
तुम्हारा आम आदमी यक़ीनन शहरी और पढ़ा लिखा है और अपनी जिजीविषा और यादों के बीच डूबता उतराया रहता है। वो प्रेमचंद का आम आदमी नहीं है जो ग्रामीण है और उसी परिवेश में संघर्षरत है, जो अपनी गरीबी में भी अक्सर मस्त रहता है, दरिद्रता का उपहास करता नज़र आता है। इसलिए तुम्हारे और प्रेमचंद की कहानियों के अंत में एक खास अंतर है।
आम आदमी की बात चले और ओ' हैनरी और कमलेश्वर की बात ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। ओ' हैनरी का यूरोपियन परिवेश भिन्न है लेकिन उसका आम आदमी भी दरिद्र है, सताया हुआ है । प्रेमचंद और ओ' हैनरी का संघर्ष समाज से है और तुम्हारे आम आदमी का खुद से। ओ' हैनरी की कहानियों का अंत एक अप्रत्याशित झटका देता है और पाठकों को स्तब्ध छोड़ जाता है। उधर कमलेश्वर का आम आदमी टूटते रिश्तों के मायाजाल को सुलझाने की कोशिश करता है और वो भी दरिद्र नहीं है। कमलेश्वर की कहानियों का अंत अक्सर किसी समाधान से होता है। लेकिन तुम अपनी कहानियों को अंत में जितना सुलझाते हो उतना उलझा भी जाते हो। यही तुम्हारी पाठकों पर पकड़ बनाती है उन्हें उद्वेलित कर जाती है ।
तुम्हारी कहानियों को अगर अन्य कहानियों के साथ रखा जाए तो तुम्हारी कहानियां अलग से पहचानी जा सकती हैं। और यह तुम्हारे लेखन की बहुत बड़ी सफलता है।
तुम्हारी पुरानी गाँठ खौलने के लिये तरुण का मरना जरुरी था क्या ? मस्त रहो और मस्ती भरे रचनायें करना अच्छा और सुखद होगा । निरंजन
मैं तुम्हारी कहानियों को बड़े चाव से पढ़ता हूं और तुम्हारी लेखनी का कायल हूं। तुम्हारी लेखनी शैली अब कुछ कुछ मेरी समझ में आने लगी है। इसने रफ़्तार पकड़ ली है और आगे हर मुकाम पर यह और महीन, अदबज़दा और परिष्कृत होती चली जाएगी । अभी इसका रूप और बदलेगा, ये अपने अवगुंठनों से, अपने हिजाबों से और बाहर आएगी और तब तुम्हारे अंदाज़ ए अदब की, लेखन शैली की और समीक्षाएं की जायेंगी और तुम्हारी दास्तानगोई के बा अदब चर्चे होंगे।
सो एक तरह से मेरी समीक्षा किसी मिड टर्म इवैल्यूएशन की तरह है।
तुम्हारी कहानियों की खासियत है उनकी झीनी सी शुरूआत, हल्के हौले से पाठकों को चारों तरफ से लपेटती हुई एक खास धुंध की तरह, एक पारभासक आवरण की तरह ।
फ़िर बारी आती है शिल्प की, जो ताना बाना तुम बुनते हो , वो बड़ा सौम्य सा कोमल सा होता है। और आख़िर में एक हल्के पंच के साथ अंत। ये अंत बहुत सारे अनुत्तरित सवालों को छोड़ जाता है। और यही तुम्हारी कहानियों की सफलता है।
यहां तुम्हारी कहानियों में एक आम आदमी है जो खुद से, अपने विचारों से, अपनी मान्यताओं से और अपने पूर्वाग्रहों से लड़ता भिड़ता रहता है और इसी क्रम में कहानी आगे बढ़ती जाती है।
तुम्हारा आम आदमी यक़ीनन शहरी और पढ़ा लिखा है और अपनी जिजीविषा और यादों के बीच डूबता उतराया रहता है। वो प्रेमचंद का आम आदमी नहीं है जो ग्रामीण है और उसी परिवेश में संघर्षरत है, जो अपनी गरीबी में भी अक्सर मस्त रहता है, दरिद्रता का उपहास करता नज़र आता है। इसलिए तुम्हारे और प्रेमचंद की कहानियों के अंत में एक खास अंतर है।
आम आदमी की बात चले और ओ' हैनरी और कमलेश्वर की बात ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। ओ' हैनरी का यूरोपियन परिवेश भिन्न है लेकिन उसका आम आदमी भी दरिद्र है, सताया हुआ है । प्रेमचंद और ओ' हैनरी का संघर्ष समाज से है और तुम्हारे आम आदमी का खुद से। ओ' हैनरी की कहानियों का अंत एक अप्रत्याशित झटका देता है और पाठकों को स्तब्ध छोड़ जाता है। उधर कमलेश्वर का आम आदमी टूटते रिश्तों के मायाजाल को सुलझाने की कोशिश करता है और वो भी दरिद्र नहीं है। कमलेश्वर की कहानियों का अंत अक्सर किसी समाधान से होता है। लेकिन तुम अपनी कहानियों को अंत में जितना सुलझाते हो उतना उलझा भी जाते हो। यही तुम्हारी पाठकों पर पकड़ बनाती है उन्हें उद्वेलित कर जाती है ।
तुम्हारी कहानियों को अगर अन्य कहानियों के साथ रखा जाए तो तुम्हारी कहानियां अलग से पहचानी जा सकती हैं। और यह तुम्हारे लेखन की बहुत बड़ी सफलता है।
बहुत बहुत धन्यवाद संजय l पुस्तक की भूमिका तुम्ही से लिखवाऊंगा !
हृदयस्पर्शी।
Good one