पुरातत्व विभाग की खुदाई में जमीन के नीचे से कोई प्राचीन दुर्लभ मूर्ति जैसे थे मास्टर ताराचंद जिन्हे उनके छात्र तो छात्र, उनकी अपनी पत्नी भी मास्साब कह कर पुकारती थी I चंबल घाटी के मुरैना शहर की वो जीवित विरासत थे I सरकारी स्कूल में 40 साल तक पढ़ाकर उन्होंने अपनी देह गला दी थी, पर उनकी ऐंठन अभी तक गई नहीं थी। इस स्कूल में मास्टर साहब हेड मास्टर बनने से पहले गणित के अध्यापक थे I हेड मास्टर बनने के बाद प्रशासनिक जिम्मेदारी के बावजूद उन्होंने गणित पढ़ाना छोड़ा नहीं I पढ़ाने में उन्होंने भले ही कभी कंजूसी दिखाई हो पर छात्रों को कूटने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी I यह कहना कठिन है पर शायद छात्रों की पिटाई के लोभ में ही उन्होंने हेड मास्टर बनने के बाद भी पढ़ाना जारी रखा था I
शिक्षक होने के नाते मास्साब सरस्वती के उपासक थे किन्तु कक्षा में उनका दुर्गा अवतार ही दिखाई पड़ता था i चॉक, डस्टर, छड़ी उनके नित्य के हथियार थे जिस से छात्र भयभीत रहते थे i छात्रों की उँगलियों में पेंसिल फॅसा कर प्रताड़ना देने की कला में भी वे पारंगत थे I उनके पढ़ाए हुए छात्रों में डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस ऑफिसर, और वकील तो थे ही लेकिन खास बात यह थी कि उनके कुछ छात्र चंबल के कुख्यात डकैत भी निकले!
मास्टर ताराचंद रिटायर हो चुके थे I रोज शाम को काली अचकन, सफेद तंग पायजामा, और हाथ में घड़ी लेकर शहर की परिक्रमा करते थे। ऐसा लगता था जैसे हर शाम वो जन संपर्क यात्रा पर निकलते हों।
लोग दूर से देखते, मुस्कुराते और आदर से कहते,
“राम राम, मास्साब”
मास्साब, अपनी घनी मूंछों को ताव देकर गर्व में सिर हिलाते,
“जियो बेटा, मेरी पढ़ाई काम आ रही है?”
एक बार मास्साब का 20 साल का भांजा, उदयपुर से मुरैना आ रहा था। रास्ते में बस खराब हो गई। अब बेचारा क्या करे? सर्दियों के दिन थे और रात घिरने वाली थी I बाकी यात्री दूसरी बस की प्रतीक्षा कर रहे थे पर वह पास के पेट्रोल पंप पर गया तो वहां एक ट्रक ड्राइवर मिल गया।
“भैया, मुरैना जाना है I कोई सवारी मिलेगी?”
ड्राइवर बोला, “ट्रक में मार्बल लदा है, पीछे बैठ लो, मुरैना तक छोड़ देंगे।”
भांजा भी नौसिखिया था, बिना सोचे-समझे मकराना मार्बल से लदे हुए ऊपर से खुले ट्रक पर सवार हो गया । ट्रक के पीछे पहले से दो आदमी बैठे थे I कंबल से बदन और सर को ढके भांजे को अपने सहयात्री संदिग्ध लग रहे थे I अब तक भांजे को कंबल के नीचे छिपी दो बंदूके भी दिख चुकी थी I उसको यह जानकारी तो पहले से ही थी कि पूरे भारत में सबसे अधिक और ऊपर से बिना लाइसेंस का हथियार मुरैना में ही पाया जाता है I आशंका से भांजे का दिल धड़कने लगा I वह उनसे थोड़ी दूरी बनाकर एक कोने में दुबक कर बैठ गया। दोनों आदमी उसकी ओर देख कर आपस में खुसुर पुसुर करने लगे I
थोड़ी देर में उन दो व्यक्तियों में से एक ने भारी आवाज़ में उससे पूछा, “कहाँ जा रहे हो, छोरे?”
भांजे ने धीरे से जवाब दिया, “मुरैना” I
“हम भी तो मुरैना के है I वहां किसके घर जा रहे हो?”
“मास्टर ताराचंद जी के यहां... मेरे मामा हैं।”
“अरे, वाह! मास्साब के यहां!”
इतना सुनते ही दोनों आदमी एक-दूसरे को देखकर मुस्कराए। एक ने गले में लटकी बंदूक थोड़ी सी हिलाते हुए कहा, “अरे छोरे, पहले क्यों नहीं बताया? हम तो सोच रहे थे कि बढ़िया घर का लौंडा है, फिरौती के काम आ सकता है!”
भांजा पूरी तरह घबरा गया और कातर दृष्टि से उनकी तरफ देखने लगा I
अब दूसरे व्यक्ति ने समझाने वाले भाव से सलाह दी, “बेटा, ये चंबल का इलाका है I यहां सफर में चौकस रहा करो और अंधेरे में घर से ना निकला करो?”
भांजे ने बलि के बकरे की तरह सहमति में सर हिलाया I
“चलो, अब चूंकि तुम मास्साब के भांजे निकले, तो हमारी तरफ से बेफिक्र रहो । तुम इसे हमारी तरफ से मास्साब को हमारी गुरु दक्षिणा मान लो नहीं तो आज तुम बचते नहीं I”
उनका ठहाका सुन कर भांजे को फिल्म शोले के गब्बर सिंह की याद आ गयी I वह इसी उधेड़बुन में सोचने लगा कि न जाने किस क्षण दोनों व्यक्तियों का मन बदल जाए और वे जबरदस्ती उसे अगुवा कर लें I
भांजा अभी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाया था I मील पत्थर बता रहे थे कि मुरैना अभी 60 किलोमीटर दूर था I उसकी मनः स्थिति को जानते हुए एक व्यक्ति ने दूसरे को संकेत किया तो उसने खड़े हो कर बन्दूक के कुंदे से फ़िल्मी अंदाज़ में लापरवाही से ट्रक में क्लीनर की खिड़की पर ठक ठक की I क्लीनर ने चलते ट्रक की खिड़की से शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन निकालकर प्रश्नात्मक दृष्टि से उस व्यक्ति को देखा I हवा के शोर के ऊपर उसने पूरे रौब में क्लीनर को मुरैना के मास्साब के घर तक उनके भांजे को छोड़ने का हुक्म सुनाया I क्लीनर और ड्राइवर ने बिना किसी हील हुज़्ज़त के आदेश का पालन किया I
घर के बाहर ट्रक रुका तो एक बंदूकधारी ने हाथ पकड़ कर भांजे को ट्रक से उतरने में सहायता करी I
“भांजे, मास्साब को तोमर भाइयों की तरफ से राम-राम कह दीजो! और ये भी कहियो कि इतने डंडे तो हमने पुलिस वालों से नहीं खाए जितने उनसे खाए थे।”
भांजा पसीने से तर-बतर, कांपते हुए घर के अंदर घुसा।
“मामा जी, आज तो बस जान बच गई!”
मास्साब ने प्यार से भांजे कि पीठ सहलाई और पुछा, "क्या कोई सड़क दुर्घटना हो गयी थी?"
भांजे ने एक ही सांस में अपनी आपबीती सुना डाली I
“अरे, तोमर भाइयों से मुलाकात हो गयी तुम्हारी! पूरे छटे हुए बदमाश है दोनों I बचपन में बहुत सुते है मुझसे I एक ही कक्षा में तीन तीन साल लगाते थे और पांचवी के बाद तो पढ़ना ही छोड़ दिया था I”
“हाँ मामाजी, वे आपके डंडे को भी याद कर रहे थे I”
“कर्म तो सालों के गैर कानूनी है पर है पूरे मनमौजी I एक बार तो पुराने ज़माने की जानी मानी अभिनेत्री, मीना कुमारी, को ही दोनों ने घेर लिया था I”
“वह क्या किस्सा है, मामाजी?”
“एक रात मीना कुमारी अपनी प्रसिद्द फिल्म, पाकीज़ा, की शूटिंग के सिलसिले में शिवपुरी में कार से जा रही थी तो बीच रास्ते पेट्रोल ख़त्म हो गया I यह दोनों तोमर भी वहां सै गुज़र रहे थे I बस, दोनों ने कार में बैठे सभी को बंदी बना लिया I मीना कुमारी के पति, कमाल अमरोही, जो पाकीज़ा के फिल्म निर्माता थे वे भी उसी टीम में थे I”
“अच्छा! उन लोगों से तो डकैतों ने खूब पैसे वसूले होंगे I”
“अरे नहीं I दोनों में जो बड़ा भाई है जग्गा, वह मीना कुमारी का दीवाना है ”I भांजे को आश्चर्य हुआ क़ि मामा को अपने छात्रों की निजी दिलचस्पी के बारे में इतनी जानकारी थी I
“जब जग्गा को पता चला की उनकी गिरफ्त में मीना कुमारी है तो वहीं जंगल में मंगल बना डाला I आनन् - फानन मैं ढोलक और हारमोनियम का इंतज़ाम किया गया और मीना कुमारी से उनकी ग़ज़ले सुनी गयी I काफी आवभगत के बात एक आदमी को भेज कर मीना कुमारी की कार के लिए पेट्रोल की भी व्यवस्था की उन लोगों ने I विदा होते हुए जग्गा ने अपनी हाथों पर मीना कुमारी के ऑटोग्राफ भी ले लिए थे I”
“शक्ल से तो दोनों ऐसे कला प्रेमी नहीं दिख रहे थे क़ि मीना कुमारी को बिना कुछ लिए दिए छोड़ दे I”
“अरे, तुम्हे भी तो उन्होने बिना फिरौती के छोड़ दिया न I”
“पर यह मीना कुमारी वाला किस्सा आपको कैसे मालूम पड़ा, मामा जी I”
“मीना कुमारी ने खुद बताया था I”
“मीना कुमारी ने आपको बताया था?”
“अरे बेटा, मीना कुमारी ने अपने एक इंटरव्यू में इस घटना का ज़िक्र किया था I तुम तो नए ज़माने के लड़के हो I चाहे तो गूगल पर ढूंढ लो I”
भांजा एक बार फिर मामा के समक्ष नतमस्तक हो गया, “मामा जी, मीना कुमारी को उस दिन उनकी कला ने बचा लिया था और आज मुझे आपके प्रताप ने I “
मास्साब ने मूंछों को ताव दिया, कुर्सी पर बैठ गए, और उनकी सीधी पीठ थोड़ी और तन गई। उन्हे इस बात का गर्व था कि उन्होने अपने छात्रों को केवल गणित ही नहीं पढ़ाया था बल्कि ज़िन्दगी का गुणा-भाग भी सिखाया था । बाकी फिर जैसी जिसकी किस्मत और जैसे उसके कर्म I आप कभी रात-बेरात यदि मुरैना में फँस जाए तो ताराचंद मास्टर का नाम आपकी समस्या का हल हो सकता है I
भाई धरनी
बहुत ही प्रभावशाली लेखनी के धनी हैं आप।
आपकी लेखनी का अविरल प्रवाह यूं ही बना रहे।
Great Story!If it is not real!