जो देखता नहीं तुझे दिल की निगाह से,
भटका हुआ सा लगे है मुहब्बत की राह से I
लिखने लगा हूँ एक कहानी फ़कीर की,
आगाज़ कर रहा हूँ एक बादशाह से I
इकराम आरफी - पाकिस्तानी शायर
चालीस साल की सेवा काल में मास्टर ताराचंद ने कितने छात्रों को पढ़ा डाला यह उन्हें स्वयं याद नहीं I याद है तो सिर्फ इतना कि अपने श्रम और लगन से उन्होंने हर छात्र के हाथ में एक ऐसा दीपक थमाया जिसका रहस्योद्घाटन वह कक्षा में हंसी हंसी में कुछ इस तरह से करते, ”बच्चों, जो कुछ भी ज्ञान तुम स्कूल में प्राप्त कर रहे हो वह तुम्हारे लिए जीवन में अलादीन का चिराग है I इस चिराग को जितना संभाल कर रखोगे उसके अंदर का शक्तिशाली जिन्न तुम्हारे उतने ही काम आएगा I यदि चिराग का उपयोग नहीं किया तो उसमें जंग लग जाएगा और जिन्न भी चिराग छोड़कर कहीं और चला जाएगा I” बच्चे हँसते, — पर बात दिल में उतर जाती।
दस साल पहले मास्टर जी की कक्षा में दो छात्र थे जिन्हें वह विभिन्न कारणों से कभी नहीं भूले I पहला कारण था उन दोनों छात्रों के नाम - जलज और पंकज I दोनों नाम का अर्थ एक ही I दोनों का अर्थ था "कमल". और दोनों ही पढ़ाई में कमाल के थे। I किसी वर्ष जलज कक्षा में प्रथम आता तो अगले वर्ष पंकज बाजी मार ले जाता I द्वितीय आने पर भी दोनों में से किसी का मनोबल ना गिरता, बल्कि आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही जाती I मास्टर साहब ना केवल द्वितीय आए छात्र को, बल्कि हर छात्र को समझाते, “यह आवश्यक नहीं कि हर प्रश्न का उत्तर तुम्हारे पास हो I उस से अधिक आवश्यक यह है कि किसी के दिए हुए उत्तर को चुनौती देने का और अस्वीकारने का साहस तुम्हारे पास होना चाहिए I उत्तर वही स्वीकारा जाए जो तुम्हारे अपने अनुभव और विवेक पर खरा उतरे I”
मास्टर साहब द्वारा दोनों छात्रों को ना भूलने के दो और कारण भी थे I जलज और पंकज गहरी प्रतिस्पर्धा के बावजूद भी अभिन्न मित्र थे I पंकज तो मास्टर जी का अपना बेटा ही था I हालांकि, मास्टर जी ने कभी पंकज और अन्य छात्रों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया था I यह बात सभी को अच्छी तरह मालूम थी I जहाँ एक ओर यह बात मास्टर जी की सच्चाई और निष्ठा को प्रमाणित करती थी तो दूसरी तरफ पंकज के स्वाभिमान की लौ को और भी ऊँचा करती थी I
स्कूल की पढ़ाई समाप्त होने पर जलज ने दूसरे शहर में आईआईटी में इंजीनियरिंग के लिए प्रवेश ले लिया था I मास्टर ताराचंद की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी इसलिए पंकज ने स्थानीय कॉलेज में दाखिला लेकर पढ़ाई जारी रखी I उसे समय-समय पर समाचार मिलते रहे कि जलज ने इंजीनियरिंग के बाद विदेश में आगे पढ़ाई की और वहीं किसी विश्वविद्यालय में शिक्षक भी बन गया I इधर पंकज ने कॉलेज की पढ़ाई के बाद आईआईएम से ऍम बी ए पूरा कर लिया I
आस-पड़ोस के लोग मास्टर जी को बधाई देते, “मास्टर साहब, अब तो आपके दिन फिर गए I पंकज को किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिलना तय है I अच्छे मोटे वेतन पर उसकी नियुक्ति भी होगी I आपकी मेहनत रंग लाई I” मास्टर जी मुस्कारा कर इसे ऊपर वाले की मेहरबानी बताते और कृतज्ञता से हाथ जोड़ देते I
पर फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। मास्साब के सभी मित्रों और पड़ोसियों के आश्चर्य की सीमा ना रही ना रही जब देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों से प्रस्ताव मिलने के बावजूद पंकज सभी नौकरियों को ठुकरा कर घर आ गया I मास्टर साहब के पूछने पर पंकज ने कहा,” बाबू जी , में नौकरी नहीं करूंगा I”
‘“तो फिर इतना पढ़ लिखकर क्या करोगे?”
“मैंने सोचा है कि मैं अपना व्यवसाय करूंगा I’
“कैसा व्यवसाय करने की सोची है?”
“शायद आप सुनकर हसेंगे I मैं चाय की दुकानों की एक श्रृंखला बनाना चाहता हूं I ऐसी दुकाने जहां लोग न केवल चाय पीने आएंगे बल्कि चाय के बहाने अपने अनुभव बांट सकेंगे I”
“किंतु यह कैसे संभव होगा? व्यवसाय के लिए तो रुपए पैसे की आवश्यकता होगी जो मेरे पास है नहीं I वैसे चाय की एक दुकान खोलने में तो अधिक रुपए पैसे नहीं चाहिए पर तुम तो दुकानों की एक श्रृंखला खोलने की बात कर रहे हो I”
“रुपए पैसों की चिंता आप ना करें I मैंने उसके लिए एक बिजनेस रिपोर्ट बना ली है और बैंक से लोन मिलने का आश्वासन मिल चुका है I”
मित्रों और रिश्तेदारों को जब पंकज की चाय की दुकान की योजना के बारे में पता चला तो उनके लिए यह हास्य का विषय बन गया I वे बूढ़े मास्टर जी को उलहाना देते, “बेटे को थोड़ा समझाइए I चाय की दुकान खोलने चला है! इतना पढ़ लिखकर ! यह भी कोई बात हुई? नौकरी नहीं करनी तो ना सही, कम से कम कोई ढंग का व्यवसाय तो करें I”
मास्टर साहब पर इस व्यंग्य का कोई असर नहीं होता I मास्टर ताराचंद ने सब सुना — चुपचाप। वह कहते, “यदि चाय बनाने वाला देश का प्रधानमंत्री बन सकता है तो पंकज चाय की दुकान क्यों नहीं खोल सकता? यह उसका अपना निर्णय है और मैं उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता I मैंने सदैव यही माना भी है और सिखाया भी है कि कोई काम छोटा नहीं होता I”
पंकज भी अपने फैसले पर अडिग रहा I वह कहता, “अपने लोगों को तो ‘सी सी डी’ (कैफ़े कॉफ़ी डे ) के बारे में भी नहीं पता जिसकी देशभर में लगभग एक हजार दुकाने हैं जहां लोग मुख्यतः केवल कॉफी पीने ही आते हैं I”
“पंकज, मैं पूरी तरह से तुम्हारे साथ हूं I निश्चित होकर आगे बढ़ो I भगवान अवश्य तुम्हें सफल बनाएंगे I पर यह तो बताओ कि तुम्हारी दुकान ‘सी सी डी’ से अलग कैसे होगी? लोग क्यों तुम्हारी ही दुकान पर आएंगे ?”
“बाबूजी, आपके विश्वास और आशीर्वाद के लिए मैं धन्य हूं I मैं यूं ही बिना सोचे ही इस व्यवसाय में नहीं कूदा I बहुत सोच विचार के बाद ही मैं इसकी तैयारी में जुटा हूं I”
“तुम्हारी बुद्धि और ज्ञान से व्यवसाय अच्छा ही चलेगा I थोड़ी जिज्ञासा थी इसलिए मैंने पूछा I”
“मेरी योजना एक अलग सोच पर आधारित है I हम सब जानते है कि शहरी जीवन में आपाधापी बहुत है I सब तरफ अथाह शोर है पर दिलों में सन्नाटा परसा हुआ है I लोगों के पास एक दूसरे के लिए समय और संवेदना नहीं है I कई बुजुर्गों के बच्चे विदेश में नौकरी कर रहे हैं और माता पिता यहां बिल्कुल एकाकी है I मेरी दुकान में लोग न सिर्फ चाय पियेंगे बल्कि अपना एकाकीपन भी दूर कर पाएंगे I”
“भला वह कैसे?” मास्टर जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से पंकज को देखा I
पंकज की आँखों में जोश था। वह जैसे अपना सपना जी रहा था I
"रिसेप्शन पर हर ग्राहक से पूछा जाएगा — क्या वह चाय के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता है, या किसी और की कहानी सुनना चाहता है? जैसे बुज़ुर्ग अपनी जवानी की, युवा अपनी जद्दोजहद की, कोई अपनी यात्रा की, कोई प्रेम की कहानी।" हम स्थानीय लोगों का एक डेटा बेस तैयार करेंगे — कहने वालों और सुनने वालों का।"
पंकज ने कहना जारी रखा ,“मुझे लगता है कि बहुत से लोग आपबीती कहानियां सुनने को लालायित है I उससे भी अधिक लोग अपना जीवन दूसरों से साझा करने की गहरी इच्छा रखते हैं I मेरा काम इस मांग की आपूर्ति का है I”
मास्टर जी की आंखें यह योजना सुनकर चमक गई I
“पर ऐसे लोगों के बारे में तुम्हें पता कैसे लगेगा?”
“बाबू जी, यही तो मैंने ऍम बी ए में पढ़ा है I इसके लिए मुझे प्रचार करना होगा I दुकान की ब्रांडिंग करनी होगी I कोई भी ग्राहक ‘सुनने वालों’ और ‘कहने वालों’ का पहले से चुनाव कर सकेंगे क्योंकि रजिस्टर किये हुए लोगों की तस्वीर और जीवन के अनुभवों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध रहेगी I फीडबैक से ‘सुनने वालों’ और ‘कहने वालों’ की रेटिंग भी निरंतर होती रहेगी I स्वाभाविक है कि जिसका जितना अच्छा फीडबैक होगा, उसकी उतनी मांग होगी ग्राहकों के बीच I
मास्टरजी को भी मजा आने लगा था I उन्होने पूछा, “सी सी डी में तो एक कॉफ़ी १५० रुपए से कम नहीं मिलती I तुम्हारी दूकान में चाय की कीमत क्या होगी?”
“बाबू जी, आप कक्षा में पूछते थे ना कि दिलों के बीच की दूरी कैसे नापी जा सकती है I आप यह भी पढ़ाते थे ना कि जब दूरी लम्बी हो तो किलोमीटर की इकाई असुविधाजनक हो जाती है I”
मास्टर जी ने अनुमोदन में सर हिलाया, “पर इसका चाय की कीमत से क्या वास्ता?”
“मैने अब यह जाना है कि दिलों की दूरी संवाद से तय की जा सकती है I मेरी दुकान में चाय की कीमत प्याले से नहीं ली जाएगी I संवाद की अवधि चाय की कीमत तय करेगी I जितना लम्बा संवाद उतनी अधिक उसकी कीमत I लेकिन संतोष की भी उतनी ही बड़ी चुस्की!"
“धीरे-धीरे प्रायोजित चाय बैठकों की व्यवस्था भी की जाएगी जहां ग्राहक चाय की नहीं, बैठक की कीमत चुकाएंगे I बैठक के प्राप्त मूल्य को तत्काल सुनने वालों और कहने वालों में भी बांटा जाएगा I शुभ लाभ दुकान को मिलेगा I”
“मैं समझा नहीं I” मास्टर जी ने शंका प्रकट की, “बैठक का मूल्य ‘सुनने वालों’ और ‘कहने वालों’ दोनों में बांटा जाएगा क्या?”
पंकज ने धैर्य से समझाया, “ग्राहक यदि सुनने वाला है तो सुनाने वाला उसका पूरक होगा और वही प्राप्त मूल्य के अंश का हकदार होगा I इसी तरह यदि किसी वक्ता की आवश्यकता सुनाने की है तो शांति से सुनने वाला श्रोता उसका पूरक होगा और कमाई की हिस्सेदारी श्रोता की होगी I दुकान प्राप्त मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत हिस्सा लेगी और और उसके एवज में चाय की व्यवस्था, बैठने का स्वच्छ स्थान और सर्विस प्रदान करेगी I कालांतर में हम दूसरे रेस्टोरेंट में भी यह सुविधा दे सकते हैं I फिर हमें अपने स्वयं की दुकाने बनाने की जरूरत भी ना पड़ेगी I हम इंटीग्रेटर का काम करेंगे I ओयो होटल श्रंखला और ओला कार सर्विस कुछ इसी सिद्धांत पर आधारित है I”
हैमास्टर साहब ने अचरज से उंगली दबा ली I मौलिक विचारों की कोई कमी नहीं है I यदि मनुष्य बुद्धि और विवेक से काम ले तो रेत से भी तेल निकाल सकता है I उन्होंने पंकज से पूछा, “रेस्टोरेंट का नाम क्या होगा?”
“मैंने नाम भी पहले से सोच लिया है I नाम होगा- "बातें करती दिल-खुश चाय की दुकान।!”
मास्टर जी ने सवाल दागा, “चाय की दुकान क्यों? रेस्टोरेंट क्यों नहीं?”
“चाय की दुकान पर गरीब से गरीब आदमी भी आने में हिचकिचाएगा नहीं I सुनने और सुनाने की लालसा तो अमीर और गरीब सभी में है ना I यदि उसके पास कहानी कहने या सुनाने की क्षमता है तो यह गरीब आदमी के लिए उसकी आय का अतिरिक्त स्रोत भी बन सकता है I”
मास्टर जी ने एक लंबा साँस लिया।वे अब पूरी तरह आश्वस्त थे I उनको तो पहले भी पंकज पर पूरा विश्वास था I उन्हे यह जान कर प्रसन्नता हुयी कि पंकज ने उनके दिए अलदीन के चिराग को न केवल संभाल कर रखा बल्कि उसका पूरा उपयोग भी किया I उन्हें लगा कि वह दिन दूर नहीं जब देश-विदेश में ‘बातें करती दिल खुश चाय की दुकान’ सभी स्थानों पर अपनी सुगंध फैलाएगी - केवल चाय की नहीं, बातों की भी I
फुटनोट:
1. इस कहानी को पढ़ने से पहले इसके पहले की कहानी, ‘यह कैसा गणित’?, को पढ़ना आवश्यक है I
2. कहानी का विषय कुछ अजीब लग सकता है किन्तु इसकी प्रेरणा स्विट्ज़रलैंड से ली गयी है जहाँ टाइम बैंक कांसेप्ट लागू हो रहा है I नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने इसे भारत में भी सरकार (मिनिस्ट्री ऑफ़ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट) को प्रयोग करने की सिफारिश की है I एक गैर सरकारी संस्था, टाइम बैंक ऑफ़ इंडिया, कुछ ऐसा ही प्रयास बुजुर्ग लोगों के लिए कर भी रही है I
3. अगली कहानी में हम मास्टर जी के दूसरे छात्र,जलज, को लेकर एक रोचक प्रसंग के साथ लौटेंगे I
अच्छा है ।
Intresting Sir... eagerly waiting for next ..